मृत्यु देखा,मृत्यु का आतंक देखा,
भय में ग्रसित जन को रोते देखा,
भूख की पीड़ा को मन में खलते देखा,
नयन को मौत की तलाश करते देखा
आँखों में अपाहिचपन का दर्द देखा,
बदन पर हाथ हैं , पर उसको भी अपंग देखा,
लंबा कोस सफर तय करते देखा,
आज पुनः एक बालक को मरते देखा,
मानवता की खाई को समाज में बढ़ते देखा,
आज की त्रासदी में उसी खाई में उन बालकों को निगलते देखा,
आज मैंने अपने ही आँखों को अपँग देखा।
-आकाश सिसोदिया
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