न पाप से मुक्त हुँ मैं?
न पुण्य से युक्त हुँ मैं?
समय की ललकार से,
जीवन के अतीत काल से,
ज्वलित मन के भार से,
प्रलय में नाचती काल से,
अडिग खड़ा समंदर के मंझधार में,
कोसकिओं में संचालित रक्त के प्रवाह में,
मन को कचोटता,सवालों के बाण में,
लहरों से टकराती,कगार के सिरहाने,
उठता भवंडर ज्वालामुखी के मुहाने,
रण-युद्ध के कौशल से छल्ली प्राण हैं,
वीर के शिरा से निकलती रक्तो में शान हैं,
क्या शत्रु के देह निकलती सिर्फ प्राण हैं?
चित्त को झिंझोरता,मन से करता सवाल हैं?
मन में प्रलय से भयभीत मुख-कर्ण हैं,
अंबक मौन लिए,मस्तक विचारों में गुमनाम हैं,
मस्तक के समक्ष कई अनगिनत प्रश्न के बाण हैं,
पाप-पुण्य की विश्लेषण पर न लगता विराम हैं,
न पाप से मुक्त हुँ मैं?
न पुण्य से युक्त हुँ मैं?
-आकाश सिसोदिया
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