21वी सदी और दुनिया का बहाव बहुत अधिक तेज़ी से मुड़ गया हैं,इस इंसानी दुनिया के चश्मे पर जमीं धूल उसे अंधा बनाती गयी और वो दिखने का नाटक करता गया पर उसे कुछ दिख नही रहा हैं।इतिहास जो खुद मनुष्यों ने लिखा हैं, वहाँ खुद उसे उपार्जन करने वाले को कोई महत्व ही नही दिया गया हैं।इंसानी जीवन आज पूरी तरह से व्यपार बन चुका हैं,जहाँ मनुष्य की कीमत नही उस से होने लाभ की कीमत हैं।पूरी दुनिया ,पूरा देश अपने ही दिखाए निर्देश को प्रथम मानकर पूरा दुनिया को छोटा। यह तो वही हो गया चींटी जो अपने मांद में रहकर अपने को सर्वश्रेष्ठ कह रही हैं परंतु वो खुद उसे भी ज्यादा शक्तिशाली के पास है क्या यह हैं एक भूल नहीं हैं?
कोई धर्म जो अपने आपको परमात्मा का वंशज मानता हैं और चाहता हैं की सब उसके परमात्मा को बिना कुछ पूछे उसे मानें,पर यह भी तो गलत हैं यदि धर्म किसी को जबरदस्ती अपनाना पड़े, तो क्या वो धर्म इंसानियत को दबाती नही हैं?
अमीर-गरीब,जाति,धर्म,व्यपार यह सब इंसानियत को दबा नही रहें, यह भी एक मुख्य सवाल है?
खैर अपने ध्यान दिया होगा सारे प्रश्न इंसान से संबंधित है , इस का अर्थ यह तो नही की सिर्फ इंसान ही इस पृथ्वी पर महत्वपूर्ण हैं । यह हम सबकी मानसिकता हैं जो इंसानी सोच प्राकृति को अनदेखा करवाती हैं।
सीमित ज्ञान,सीमित दृष्टि,अवलोकन की समझ की कमी होना, यही चीज़ इस दुनिया को सिर्फ इंसानी दुनिया बनाती हैं।
आज दुनिया कुछ अलग हैं,सारे इंसानी निर्मित यंत्रों की आवाज़ बन्द होने से आज सुबह गोरैया की आवाज़ भी सुनी,बहुत सालों के बाद लगा गोरैया की आवाज़ वापस आ गई हैं। यह बात मुझे एक फ़िल्म की याद दिलाती हैं "कोयला" इस फ़िल्म के मुख्य नायक शाहरुख और माधुरी होते हैं,बचपन में नायक को कोयला खिला दिया जाता हैं, जिससे उसकी आवाज़ चली जाती हैं,फिर फ़िल्म में दिखाया जाता हैं की शत्रु द्वारा आघात के बाद उसका इलाज़ होता है फिर उसकी आवाज़ वापस आ जाती हैं। पर आपका सवाल अब आता हैं की मैं फ़िल्म के बारे में बता क्यों रहा हुँ यह भी एक रोचक बात हैं जैसे फ़िल्म में हुआ इस दुनिया ने गोरैया के गले में प्रदूषण,यंत्रो-गाड़ी को शोर जिसके वजह से आवाज़ गायब हो चुकी थी पर आज खुद प्रकृति ने उसका इलाज किया उसे पुनः गाने अवसर दिया हैं। वैसे ही क़ाफी चीज़े हैं जो आज बदल रही हैं,जैसे गंगा को साफ करने के लिए कितने हज़ार करोड़ रुपये खर्च किये गए और वह साफ भी नही हुईं, परंतु प्रकृति ने उससे पुनः साफ कर रही हैं। ऐसे ही काफी चीज़े हैं जो दर्शाती हैं की मनुष्य ही मनुष्य का दुश्मन हैं उससे भी बड़ा प्रकृति का । प्रकृति से अधिक शक्ति किसी के पास नही, उसे पता हैं यह दुनिया कैसे चलानी है ।
आज एक बात सच होती दिख रही हैं , क्या दुनिया उल्टी हो गयी हैं?
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